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Friday, 26 December 2014
एक मां का ज्ञान कहेता है की गुरु सबसे बडा होता है
Friday, 19 December 2014
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ।।
Thursday, 18 December 2014
darashan do ghanashyam nath mori - Krishna bhajan
Darashan do Ghanashyam nath mori, ankhiyan pyasi re man mandir ki jyoti jagado, ghat ghat basi re mandir mandir murat teri phir bhi naa dikhe surat teri yug bite na ai milan ki puranamasi re dvar daya ka jab tu khole pacham sur me guga bole adha dekhe lagada chal kar pahunche kasi re pani pi kar pyas bujhaun naino ko kaise samajhaun ankh michauli chhodo ab man ke basi re nirbal ke bal dhan nirdhan ke tum rakh vale bhakt jano ke tere bhajan me sab sukh paun mite udasi re nam jape par tujhe na jane unako bhi tu apna mane teri daya ka at nahi hai he dukh nashi re aj phaisala tere dvar par meri jit hai teri har par har jit hai teri mai to charan upasi re dvar khada kab se matavala mage tum se har tumhari narasi ki ye binati sunalo bhakt vilasi re laj na lut jaye prabhu teri nath karo na daya me deri tin lok chhod kar ao gaga nivasi re
Darashan do Ghanashyam nath mori, ankhiyan pyasi re - 2
Paayoji mainne ram ratan dhan paayo - hindi bhajan
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo - 2
Vastu amolik dil mera sataguru - 2
kripaa kari apnaavo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo
janam janam ki punji paal - 2
jag mein sakhovaayo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo
kharcha na koi chor na lutai - 2
din din badhat savayo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo
sat ki naav khevatiya satguru - 2
bhavsagar taravayo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo
meera ke Prabhu giridhar nagar - 2
harash harash jas gaayo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo - 2....
Shree Ram bhajan
Wednesday, 17 December 2014
जीनके हदय श्री राम बसे
Tuesday, 16 December 2014
જશોદા ! તારા કાનુડાને - નરસિંહ મહેતા
આવડી ધૂમ મચાવે વ્રજમાં, નહિ કોઈ પૂછણહાર રે ?… જશોદા.
શીંકું તોડ્યું, ગોરસ ઢોળ્યું, ઉઘાડીને બાર રે;
માખણ ખાધું, વેરી નાંખ્યું, જાન કીધું આ વાર રે … જશોદા.
ખાંખાખોળા કરતો હીંડે, બીએ નહીં લગાર રે;
મહી મથવાની ગોળી ફોડી, આ શાં કહીએ લાડ રે …. જશોદા.
વારે વારે કહું છું તમને, હવે ન રાખું ભાર રે;
નિત ઊઠીને કેટલું સહીએ ? રહેવું નગર મુઝાર રે … જશોદા.
‘મારો કાનજી ઘરમાં હુતો, ક્યારે દીઠો બહાર રે ?
દહીં-દૂધનાં માટ ભર્યાં પણ ચાખે ન લગાર રે … જશોદા.
શોર કરંતી ભલી સહુ આવી ટોળે વળી દશ-બાર રે !
નરસૈંયાનો સ્વામી સાચો, જૂઠી વ્રજની નાર રે’ …. જશોદા.
– નરસિંહ મહેતા
જેટલા લાડ કૃષ્ણે એના ભક્તોને અને ભક્તોએ એને લડાવ્યા છે એ અન્ય તમામ ભગવાન માટે ઈર્ષ્યાજનક છે. નરસિંહ મહેતાના આ ખૂબ જાણીતા પદમાં ગોપી અને યશોદાના કલહસ્વરૂપે અનન્ય ક્હાન-પ્રેમ ઉજાગર થયો છે. નટખટ કાનુડો એના તોફાન માટે જાણીતો છે. એ શીંકાં તોડે છે, માખણ ખાય ન ખાય અને વેરી નાંખે છે, દહીં વલોવવાની મટકી પણ ફોડી નાંખે છે અને છતાં છાતી કાઢીને કોઈથીય બીતો ન હોય એમ ફરે છે. ગોપીઓ હવે આ નગરમાં રહેવું અને રોજેરોજ અને કેટલું સહેવું એવો પ્રશ્ન કરે છે ત્યારે માતા યશોદા મારો કાનુડો તો ઘરમાં જ હતો એમ કહીને વળી એનું જ ઉપરાણું લે છે. વાતચીતના કાકુ અને અદભુત લયસૂત્રે બંધાયેલું આ ગીત વાંચવા કરતાં ગણગણવાની જ વધુ મજા આવે છે…
(જાન કીધું = જાણીને કર્યું; મહી મથવાની ગોળી = દહીં વલોવવાની માટલી; મુઝાર = અંદર, માં)
મારી હૂંડી સ્વીકારો મહારાજ – નરસિંહ મહેતા
મારી હૂંડી શામળીયાને હાથ રે, શામળા ગિરધારી
સ્થંભ થકી પ્રભુ પ્રગટીયા, વળી ધરીયા નરસિંહ રૂપ,
પ્રહલાદને ઉગારીયો રે…
હે વા’લે માર્યો હરણાકંસ ભૂપ રે, શામળા ગિરધારી
ગજને વા’લે ઉગારીયો, વળી સુદામાની ભાંગી ભુખ,
સાચી વેળાના મારા વાલમા રે…
તમે ભક્તો ને આપ્યા ઘણા સુખ રે, શામળા ગિરધારી
પાંડવની પ્રતિજ્ઞા પાળી, વળી દ્રૌપદીના પૂર્યા ચીર,
નરસિંહ મેહતાની હૂંડી સ્વીકારજો રે…
તમે સુભદ્રા બાઇના વિર રે, શામળા ગિરધારી
રેહવાને નથી ઝુંપડું, વળી જમવા નથી જુવાર,
બેટા-બેટી વળાવીયા રે…
મેં તો વળાવી ઘર કેરી નાર રે, શામળા ગિરધારી
ગરથ મારું ગોપીચંદન વળી તુલસી હેમ નો હાર,
સાચું નાણું મારે શામળો રે…
મારે મૂડીમાં ઝાંઝ-પખાજ રે, શામળા ગિરધારી
તિરથવાસી સૌ ચાલીયા વળી આવ્યા નગરની બહાર,
વેશ લીધો વણીકનો રે…
મારું શામળશા શેઠ એવું નામ રે, શામળા ગિરધારી
હૂંડી લાવો હાથમાં વળી આપું પૂરા દામ,
રૂપીયા આપું રોકડા રે…
મારું શામળશા શેઠ એવું નામ રે, શામળા ગીરધારી
હૂંડી સ્વીકારી વા’લે શામળે વળી અરજે કિધાં કામ,
મેહતાજી ફરી લખજો રે…
મુજ વાણોત્તર સરખાં કામ રે, શામળા ગિરધારી
મારી હૂંડી સ્વીકારો મહારાજ રે, શામળા ગિરધારી
મારી હૂંડી શામળીયાને હાથ રે, શામળા ગિરધારી
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
मन मंदिर की ज्योति जगा दो घट घट वासी रे
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
मंदिर मंदिर मूरत तेरी
फिर भी ना दीखे सूरत तेरी
युग बीते, ना आई मिलन की पूरनमासी रे
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
द्वार दया का जब तू खोले
पंचम स्वर में गूंगा बोले
अंधा देखे, लंगड़ा चल कर पंहुचे काशी रे
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
पानी पी कर प्यास बुझाऊं
नैनों को कैसे समझाऊं
आंख मिचौली छोड़ो अब तो
मन के वासी रे
दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे
Saturday, 6 December 2014
वन्दे मातरं वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्
शश्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरम्.
सुब्रज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्
पुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिनीम्
सुखदां वरदां मातरं वन्दे मातरम्.
I bow to thee, Mother,
richly-watered, richly-fruited,
cool with the winds of the south,
dark with the crops of the harvests,
The Mother!
Her nights rejoicing in the glory of the moonlight,
her lands clothed beautifully with her trees in flowering bloom,
Sweet of laughter, sweet of speech,
The Mother, giver of boons, giver of bliss.
Saturday, 29 November 2014
चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है || ध्रु ||
जहॉं सिंह बन गये खिलौने गाय जहॉं मॉं प्यारी है
जहॉं सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है || 1 ||
जहॉं कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी है
त्याग और तप की गाथाऍं गाती कवि की वाणी है
ज्ञान जहॉं का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है || 2 ||
जिस के सैनिक समरभूमि मे गाया करते गीता है
जहॉं खेत मे हल के नीचे खेला करती सीता है
जीवन का आदर्श जहॉं पर परमेश्वर का धाम है || 3 ||
Thursday, 27 November 2014
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
Sunday, 23 November 2014
धरती की शान तू है मनु की संतान
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढे चलो बढे चलो
Tuesday, 18 November 2014
भाग मत कर प्रयास
असफलता घेरे तुझे..
मार्ग हों अवरुद्ध,
पास ना हो धन तेरे
और कार्य हो अपार
तो भाग मत कर प्रयास
कर प्रयास भाग मत
चाहे तू हंस
किंतु आँखे हो नम.....
भाग मत कर प्रयास
जीत में ही हार है
रात में ही है दिन,
निकलेगा सूरज फिर क्षितिज पार
भाग मत कर प्रयास
पीड़ा ही सुख है
सुख ही है पीड़ा
हार ही जीत है
जीत ही है हार
तो भाग मत कर प्रयास
कर प्रयास भाग मत
भाग मत कर प्रयास
कर प्रयास भाग मत.....
- आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्त
Monday, 17 November 2014
चिंतन
ईन्सान को जागृत अवस्था में चींतन करना जरुरी है,
ओर यही चींतन आपको सदैव जागृत रखेगा.
kutchpatel.blogspot.com
પંખીડાને આ પીંજરુ જૂનું જૂનું લાગે
Friday, 14 November 2014
Friday, 7 November 2014
जय जय जननी श्री गणेश की
Tuesday, 4 November 2014
सबसो उंची प्रेम सगाई
बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
- सुभद्रा द्वारा कृष्ण को पत्र
- बीनती सुनीये....
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी; बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
- रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी,
- रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी;
- मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी, बीनती सुनीये नाथ हमारी.
- जनम जनम की लगी लगन है, हो.....,
- जनम जनम की लगी लगन है,
- साक्सी तारोन भरा गगन है,
- गीन गीन स्वास आस कहेती है,
- आयेगा श्री कृष्ण मुरारी,
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
- सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हो ओ ओ,
- सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हे भवबाधा, वीपती- वीमोचन, स्वागत का अधीकार दीजीये,
- सरणागत है नयन पुजारी,
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
- ओर कहुं क्या अंतरयामी, हो ओ ओ,
- तन मन धन प्राणो के स्वामी;
- करुणा कर आखर येह कीजीये,
- स्वीकारी बीनती स्वीकारी,
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
- हदयस्वर हरि हदयेस्वरी,
- हदयस्वर हरि हदयेस्वरी;
- मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी,
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
- बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
- बीनती सुनीये.........नाथ हमारी.
Monday, 3 November 2014
महेनत के फल मीठे होते है
नथु नाम का एक किसान था़, साथ में आलसी भी था, उसके पास एक खेत था, मगर कभी खेत में ध्यान देता नही, खेत में आम, पेरु, अनार ओर बहोत कीसम के फल के पेड थे, पर पानी ओर खात की कमी की वजह से सुक जाते थे, बाप दादा की महेनत की कमाई जमा पुंजी से घर चलाता था, आलसी नथु पुरा दिन आराम ही करता कोई काम काज करता ही नही.
एक दिन सोया था तभी उसे सपना आया की तेरे खेत में धन छुपाया है, खोदकाम करेगा तो मीलेगा ! सुबह होते ही नथु ओजार लेके खेत में पहुच गया, नथु के मन में यही था की एक बार धनदोलत मील जाये तो पुरी जींदगी कोई काम करने की जरुरत ना रहे, बस जलसा ही जलसा ! दुपेर होते ही नथु की ओरत खाना लेकर आई, खाना खाने की बजाय खोदकाम चालु रखा, धन मीलने की आशा में पुरा खेत खोद डाला, फीर भी धन नही मीला ओर नीराश होकर बैठ गया.
बरसो से खेत वैसे का वैसा ही पडा था मगर ये साल नथु ने धन की लालच में जमीन खोद डाली थी उपर से बारीस भी अच्छी हुई थी ओर भगवान की ईच्छा से पेड पे फल भी अच्छे लगे थे, टोकरे भर भर के फल बेचा था ओर ईश्वर का शुक्र मानता था, कभी ईतनी उपज देखी नही थी!
महेनत करने वाले को ईश्वर जरुर देता है !!
महेनत के फल मीठे होते है !!
महेनत करने वाला कभी दुखी नही होता.
ली सीमा
Saturday, 25 October 2014
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
Friday, 17 October 2014
कैसा पुजारी है जो खुद चखकर भगवान को भोग
Friday, 15 August 2014
सुझाव
पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक
कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए
पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।
सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू
किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद
उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न
नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह
खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद
भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह
कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस
क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद
डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस
आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने
की सलाह दी थी।
उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले,
पानी एक में भी नहीं निकला। उस
व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं
चल कर उस स्थान पर आया, जहां उसने दस
गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह
समझ गया। बोला, ‘दस कुआं खोदने की बजाए
एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और
पुरूषार्थ लगाते तो पानी कब का मिल
गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल
एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल
आएगा।’
कहने का मतलब यही कि आज
की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट
करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है।
इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है
और पूरी एक भी नहीं हो पाती।

बाज और किसान…
बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।

“कोई तुम्हारी बुराई करता है”
अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर -दूर तक उसे लोग जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे .
पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना , वे उसी के बारे में बात कर रहे थे .
धीरे -धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है , और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दुखी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा , “ आज -कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं ;कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”
महात्मा मोहन कि समस्या समझ चुके थे .
मोहन बोला , “ ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है ?”
पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो तुम भी यही गलती कर बैठे , तुम्हे लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई करता है पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोग मुठ्ठी भर मेढक के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों , और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे।”

Sunday, 20 July 2014
मटके में आठ प्रकार के जुठ
एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक
Saturday, 24 May 2014
MAHAMRITYUNJAY MANTRA
Monday, 10 March 2014
નમું તને, પથ્થરને? નહીં, નહીં, શ્રદ્ધા તણા આસનને નમું નમું :
શ્રદ્ધા તણા આસનને નમું નમું :
જ્યાં માનવીનાં શિશુ અંતરોની
શ્રદ્ધાભરી પાવન અર્ચના ઠરી.
આંખો જહીં પ્રેમળતા ઝરી ઝરી.
તું માનવીના મનમાં વસ્યો અને
તનેય આ માનવ માનવે કર્યો;
થયેલ ભાળી અહીં, તેહને નમું.
તું કાષ્ઠમાં, પથ્થર, વૃક્ષ, સર્વમાં,
શ્રદ્ધા ઠરી જ્યાં જઇ ત્યાં, બધે જ તું.
શ્રદ્ધા તણું આસન જ્યાં નમું તહીં.
Saturday, 8 March 2014
श्री कुंजबिहारी जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लटन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
સ્નેહીનાં સોણલા આવે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે :
હૈયાનાં હેત તો સતાવે, સાહેલડી !
આશાની વેલ મારી ઊગી ઢળે.
ચમકે ચપળા આભમાં,
એવા એવા છે પ્રિયના ચમકાર : રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
ઊને આંસુ નયનો ભીંજે,
એવાં એવાં ભીંજે મારા ચીર : રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
ઝબકે મહીં ધૂણી જોગીની,
એવા એવા છે પ્રિયના ઝબકાર : રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
પડે પતંગ, મહીં જલે,
એવી એવી આત્માની અધીર : રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
સ્નેહીનાં સંભારણા
એવાં એવાં ખૂંચે દિલ મોઝાર : રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
રોઈ રોઈ આંસુની ઊમટે નદી તો એને કાંઠે કદમ્બવૃક્ષ વાવજો,
વાદળ વરસે ને બધી ખારપ વહી જાય પછી ગોકળિયું ગામ ત્યાં વસાવજો.
પાંપણનાં દ્વાર કેમ દેશું?
એક પછી એક પાન ખરશે કદમ્બનાં
ને વેળામાં વીખરાતાં રેશું.
પાનીએ અડીને પૂર ગળશે,
પાણીની ભીંતો બંધાઈ જશે
ગોકુળને તે દી’ ગોવાળ એક મળશે.
સાટે જીવતર લખી જાશું,
અમથુંયે સાંભરશું એકાદા વેણમાં
તો હૈયું વીંધાવીને ગાશું.
લીલુડાં વાંસવન વાઢશો ન કોઈ, મોરપીંછિયુંને ભેળી કરાવજો.
તમારું મુલ્ય કેટલું છે તે તમારી ઉપર નિર્ભર છે
એક યુવાને એના પિતાને પૂછ્યું કે પપ્પા આ માનવજીવનનું મૂલ્ય શુ છે ? પિતાએ જવાબમાં દીકરાના હાથમાં એક પથ્થર મુક્યો અને કહ્યું, "તું આ પથ્થર...
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धरती की शान तू है मनु की संतान, तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे. मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत, मनुष्य तू बड़ा महान है. तू जो चाहे पर्वत प...
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असफलता घेरे तुझे.. मार्ग हों अवरुद्ध, पास ना हो धन तेरे और कार्य हो अपार तो भाग मत कर प्रयास कर प्रयास भाग मत चाहे तू हंस किंतु आ...
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વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ નયન કમળથી ધારા વહેતી પ્રભુ નયન કમળથી ધારા વહેતી પ્રભુ ન...