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Friday, 26 December 2014

एक मां का ज्ञान कहेता है की गुरु सबसे बडा होता है

एक मां का ज्ञान कहेता है की गुरु सबसे बडा होता है,

एक समय की बात है,

विक्रम संवत के ३०० साल पुर्व की बात है, तभी मगध धनानंद के प्रभाव के तले घुटल के बल पे टीका हुआ था,

तभी महान आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य मगध को धनानंद से मुक्त कराने के लीये सच्चाई की लडाई लड रहे थे, एक समय एसा आया की धनानंद ने महान आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य, चंन्द्रगुप्त की मां मुर्रा और चंन्द्रगुप्त मौर्य तीनो को पकड लीया, 

आपको ज्ञात होगा की धनानंद कीतना कृर था तो सजा भी उससे ज्यादा देता था, 
और तुरंत सजा सुनाई गई सजा ये थी की चंन्द्रगुप्त अपने आचार्य को मारे और अपनी मां को छुडा के जा सकता है, चंन्द्रगुप्त सोच में पड गया की अब करुं तो क्या करुं जीससे मा और गुरु दोनो को बचाया जा सके, 

तभी अचार्य बोले चंन्द्रगुप्त तुं मुझे मार दे और अपनी मां को छुडा ले क्युं की मां सबसे बडा गुरु है, मा से बडा कोई गुरु नही है ईस सृष्ठी में, मां ने गुरु के वचन सुने और मां बोली बेटा चंन्दु मुझे मार दे मुझे मार देने से अखंड भारत के सपने को भी पुरा कर सकेगा और गुरु बचे रहे तो चंन्दु हजारो पैदा हो सकेगा,
मेरे रहेने अच्छा है की तु गुरु को बचा ले और मुझे मार दे,
आचार्य और चंन्द्रगुप्त की मां के बीच ये बात चलती रही मगर गुरु ने अपनी जीद छोडी नी आखीर धनानंद ने चंन्द्रगुप्त की मां मुरा को मार दीया,
सेवा विनतभावेन, गुरोराज्ञानुं पालनम् 
य: करोति बीनाव्यजम् शिशष्य प्रवरस्मृ:

गुरु ने तो मां को महान बताया मगर मां के हीसाब से गुरु से बडा कोई नही है.



Friday, 19 December 2014

एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ।।

एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ।। 
कर दो अधम की नैया, भव पार हे कन्हैया ।।... 

अच्छा हूँ या बुरा हूँ , पर दास हूँ तुम्हारा । 
जीवन का मेरे तुम पर, है भार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

तुम हो अधम जनों का, उद्धार करने वाले ।
मैं हूँ अधम जनों का, सरदार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

करूणानिधान करूणा, करनी पडेगी तुमको । 
वरना ये नाम होगा, बेकार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया ...

ख्वायश ये है कि मुझसे, दृग बिंदु अश्रु लेकर । 
बदले में दे दो अपना, कुछ प्यार हे कन्हैया ।। 
एक अर्ज मेरी सुनलो, दिलदार हे कन्हैया... 
कर दो अधम की नैया, भव पार हे कन्हैया ।।
जय श्री राधे श्याम.......

Thursday, 18 December 2014

darashan do ghanashyam nath mori - Krishna bhajan

Darashan do Ghanashyam nath mori, ankhiyan pyasi re 
man mandir ki jyoti jagado, ghat ghat basi re 

mandir mandir murat teri 
phir bhi naa dikhe surat teri 
yug bite na ai milan ki 
puranamasi re  

dvar daya ka jab tu khole 
pacham sur me guga bole 
adha dekhe lagada chal kar 
pahunche kasi re  

pani pi kar pyas bujhaun 
naino ko kaise samajhaun 
ankh michauli chhodo ab 
man ke basi re  

nirbal ke bal dhan nirdhan ke 
tum rakh vale bhakt jano ke 
tere bhajan me sab sukh paun 
mite udasi re  

nam jape par tujhe na jane 
unako bhi tu apna mane 
teri daya ka at nahi hai 
he dukh nashi re 

aj phaisala tere dvar par 
meri jit hai teri har par 
har jit hai teri mai to 
charan upasi re  

dvar khada kab se matavala 
mage tum se har tumhari 
narasi ki ye binati sunalo 
bhakt vilasi re 

laj na lut jaye prabhu teri 
nath karo na daya me deri 
tin lok chhod kar ao 
gaga nivasi re
Darashan do Ghanashyam nath mori, ankhiyan pyasi re - 2
 

Paayoji mainne ram ratan dhan paayo - hindi bhajan

Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo - 2

Vastu amolik dil mera sataguru - 2
kripaa kari apnaavo 
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo 
 
janam janam ki punji paal - 2
jag mein sakhovaayo
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo 
 
kharcha na koi chor na lutai - 2
din din badhat savayo 
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo 
 
sat ki naav khevatiya satguru - 2
bhavsagar taravayo 
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo 
 
meera ke Prabhu giridhar nagar - 2
harash harash jas gaayo 
Paayoji mainne Ram ratan dhan paayo - 2....
 
Shree Ram bhajan 
 
 

Wednesday, 17 December 2014

जीनके हदय श्री राम बसे

जीनके हदय श्री राम बसे ओर को नाम लीयो ना लीयो 
जीनके हदय श्री राम बसे ओर को नाम लीयो ना लीयो

कोई मांगे कंचन सी काया 
कोई मांग रहा प्रभु से माया

कोई पुण्य करे 
कोई दान करे
कोई दान क्रोध बखान करे
जीन कन्या धन को दान दीयो 
जीन कन्या धन को दान ओर को दान दीयो ना दीयो
जीनके हदय श्री राम बसे ओर को नाम लीयो ना लीयो

कोई घर में बैठा नमन करे
कोई हरि मंदीर में भजन करे
कोई गंगा जमना स्नान करे
कोई काशी जाके ध्यान धरे

जीन मात-पीता की सेवा की
जीन मात-पीता की सेवा की तीरथ स्नान कीयो न कीयो 
जीनके हदय श्री राम बसे ओर को नाम लीयो ना लीयो...२

श्री राम भजन 


Tuesday, 16 December 2014

જશોદા ! તારા કાનુડાને - નરસિંહ મહેતા

આવડી ધૂમ મચાવે વ્રજમાં, નહિ કોઈ પૂછણહાર રે ?… જશોદા.

શીંકું તોડ્યું, ગોરસ ઢોળ્યું, ઉઘાડીને બાર રે;
માખણ ખાધું, વેરી નાંખ્યું, જાન કીધું આ વાર રે … જશોદા.

ખાંખાખોળા કરતો હીંડે, બીએ નહીં લગાર રે;
મહી મથવાની ગોળી ફોડી, આ શાં કહીએ લાડ રે …. જશોદા.

વારે વારે કહું છું તમને, હવે ન રાખું ભાર રે;
નિત ઊઠીને કેટલું સહીએ ? રહેવું નગર મુઝાર રે … જશોદા.

‘મારો કાનજી ઘરમાં હુતો, ક્યારે દીઠો બહાર રે ?
દહીં-દૂધનાં માટ ભર્યાં પણ ચાખે ન લગાર રે … જશોદા.

શોર કરંતી ભલી સહુ આવી ટોળે વળી દશ-બાર રે !
નરસૈંયાનો સ્વામી સાચો, જૂઠી વ્રજની નાર રે’ …. જશોદા.

– નરસિંહ મહેતા

જેટલા લાડ કૃષ્ણે એના ભક્તોને અને ભક્તોએ એને લડાવ્યા છે એ અન્ય તમામ ભગવાન માટે ઈર્ષ્યાજનક છે.  નરસિંહ મહેતાના આ ખૂબ જાણીતા પદમાં ગોપી અને યશોદાના કલહસ્વરૂપે અનન્ય ક્હાન-પ્રેમ ઉજાગર થયો છે.  નટખટ કાનુડો એના તોફાન માટે જાણીતો છે. એ શીંકાં તોડે છે, માખણ ખાય ન ખાય અને વેરી નાંખે છે, દહીં વલોવવાની મટકી પણ ફોડી નાંખે છે અને છતાં છાતી કાઢીને કોઈથીય બીતો ન હોય એમ ફરે છે. ગોપીઓ હવે આ નગરમાં રહેવું અને રોજેરોજ અને કેટલું સહેવું એવો પ્રશ્ન કરે છે ત્યારે માતા યશોદા મારો કાનુડો તો ઘરમાં જ હતો એમ કહીને વળી એનું જ ઉપરાણું લે છે. વાતચીતના કાકુ અને અદભુત લયસૂત્રે બંધાયેલું આ ગીત વાંચવા કરતાં ગણગણવાની જ વધુ મજા આવે છે…

(જાન કીધું = જાણીને કર્યું; મહી મથવાની ગોળી = દહીં વલોવવાની માટલી; મુઝાર = અંદર, માં)

મારી હૂંડી સ્વીકારો મહારાજ – નરસિંહ મહેતા

મારી હૂંડી સ્વીકારો મહારાજ રે, શામળા ગિરધારી

મારી હૂંડી શામળીયાને હાથ રે, શામળા ગિરધારી

સ્થંભ થકી પ્રભુ પ્રગટીયા, વળી ધરીયા નરસિંહ રૂપ,
પ્રહલાદને ઉગારીયો રે…
હે વા’લે માર્યો હરણાકંસ ભૂપ રે, શામળા ગિરધારી

ગજને વા’લે ઉગારીયો, વળી સુદામાની ભાંગી ભુખ,
સાચી વેળાના મારા વાલમા રે…
તમે ભક્તો ને આપ્યા ઘણા સુખ રે, શામળા ગિરધારી

પાંડવની પ્રતિજ્ઞા પાળી, વળી દ્રૌપદીના પૂર્યા ચીર,
નરસિંહ મેહતાની હૂંડી સ્વીકારજો રે…
તમે સુભદ્રા બાઇના વિર રે, શામળા ગિરધારી

રેહવાને નથી ઝુંપડું, વળી જમવા નથી જુવાર,
બેટા-બેટી વળાવીયા રે…
મેં તો વળાવી ઘર કેરી નાર રે, શામળા ગિરધારી

ગરથ મારું ગોપીચંદન વળી તુલસી હેમ નો હાર,
સાચું નાણું મારે શામળો રે…
મારે મૂડીમાં ઝાંઝ-પખાજ રે, શામળા ગિરધારી

તિરથવાસી સૌ ચાલીયા વળી આવ્યા નગરની બહાર,
વેશ લીધો વણીકનો રે…
મારું શામળશા શેઠ એવું નામ રે, શામળા ગિરધારી

હૂંડી લાવો હાથમાં વળી આપું પૂરા દામ,
રૂપીયા આપું રોકડા રે…
મારું શામળશા શેઠ એવું નામ રે, શામળા ગીરધારી

હૂંડી સ્વીકારી વા’લે શામળે વળી અરજે કિધાં કામ,
મેહતાજી ફરી લખજો રે…
મુજ વાણોત્તર સરખાં કામ રે, શામળા ગિરધારી

મારી હૂંડી સ્વીકારો મહારાજ રે, શામળા ગિરધારી
મારી હૂંડી શામળીયાને હાથ રે, શામળા ગિરધારી





दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

मन मंदिर की ज्योति जगा दो घट घट वासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

मंदिर मंदिर मूरत तेरी

फिर भी ना दीखे सूरत तेरी

युग बीते, ना आई मिलन की पूरनमासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

द्वार दया का जब तू खोले

पंचम स्वर में गूंगा बोले

अंधा देखे, लंगड़ा चल कर पंहुचे काशी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

पानी पी कर प्यास बुझाऊं

नैनों को कैसे समझाऊं

आंख मिचौली छोड़ो अब तो

मन के वासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे


Saturday, 6 December 2014

वन्दे मातरं वन्दे मातरम्


वन्दे मातरं वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम्
शश्य श्यामलां मातरं वन्दे मातरम्.
सुब्रज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्
पुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिनीम्
सुखदां वरदां मातरं वन्दे मातरम्.

I bow to thee, Mother,
richly-watered, richly-fruited,
cool with the winds of the south,
dark with the crops of the harvests,
The Mother!
Her nights rejoicing in the glory of the moonlight,
her lands clothed beautifully with her trees in flowering bloom,
Sweet of laughter, sweet of speech,
The Mother, giver of boons, giver of bliss.

 

Saturday, 29 November 2014

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है || ध्रु ||

हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है
जहॉं सिंह बन गये खिलौने गाय जहॉं मॉं प्यारी है

जहॉं सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है || 1 ||
जहॉं कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी है

त्याग और तप की गाथाऍं गाती कवि की वाणी है
ज्ञान जहॉं का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है || 2 ||

जिस के सैनिक समरभूमि मे गाया करते गीता है
जहॉं खेत मे हल के नीचे खेला करती सीता है
जीवन का आदर्श जहॉं पर परमेश्वर का धाम है || 3 ||

Thursday, 27 November 2014

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोश*िश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। 

Sunday, 23 November 2014

धरती की शान तू है मनु की संतान

धरती की शान तू है मनु की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे.
मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत,
मनुष्य तू बड़ा महान है.

तू जो चाहे पर्वत पहाडों को फोड़ दे,
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे,
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे

अमर तेरे प्राण, मिला तुझ को वरदान,
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे.
मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत,
मनुष्य तू बड़ा महान है.

नयनो से ज्वाल, तेरी गति में भूचाल,
तेरी छाती में छुपा महाकाल है.
पृथ्वी के लाल, तेरा हिमगिरी सा भाल,
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है.

निज को तू जान, जरा शक्ति पहचान,
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे.
मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत,
मनुष्य तू बड़ा महान है.

धरती सा धीर, तू है अग्नि सा वीर,
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले.
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके,
तू जो अगर हिम्मत से काम ले.

गुरु सा मतिमान, पवन सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊंची उडान है रे.
मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत,
मनुष्य तू बड़ा महान है.

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढे चलो बढे चलो

हिमाद्री तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभो समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती 

अमर्त्य वीर पुत्र हो
दृढ प्रतिज्ञा सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
बढे चलो बढे चलो 

असंख्य कीर्ति रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह सी
सपूत मात्रभूमि के,
रुको न शूर साहसी 

अराती सैन्य सिन्धु में
सुवाढ़ वाग्नी से जलो
प्रवीर हो जयी बनो,
बढे चलो बढे चलो
- जय मा भारती
- आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य
facebook.haripatelp.com

Tuesday, 18 November 2014

भाग मत कर प्रयास

असफलता घेरे तुझे..

मार्ग हों अवरुद्ध,

पास ना हो धन तेरे 

और कार्य हो अपार 

तो भाग मत कर प्रयास

कर प्रयास भाग मत 

चाहे तू हंस 

किंतु आँखे हो नम.....

भाग मत कर प्रयास

जीत में ही हार है 

रात में ही है दिन,

निकलेगा सूरज फिर क्षितिज पार 

भाग मत कर प्रयास

पीड़ा ही सुख है 

सुख ही है पीड़ा 

हार ही जीत है 

जीत ही है हार 

तो भाग मत कर प्रयास

कर प्रयास भाग मत 

भाग मत कर प्रयास 

कर प्रयास भाग मत.....

- आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्त


Monday, 17 November 2014

चिंतन

ईन्सान को जागृत अवस्था में चींतन करना जरुरी है,

ओर यही चींतन आपको सदैव जागृत रखेगा.

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પંખીડાને આ પીંજરુ જૂનું જૂનું લાગે


પંખીડાને આ પીંજરુ જૂનું જૂનું લાગે
બહુ એ સમજાવ્યું તો યે પંખી નવું પીંજરુ માંગે

ઉમટ્યો અજંપો એને, પંડના રે પ્રાણનો
અણધાર્યો કર્યો મનોરથ દૂરના પ્રયાણનો
અણદીઠેલ દેશ જાવા, લગન એને લાગે
બહુ એ સમજાવ્યું તો યે પંખી નવું પીંજરુ માંગે

સોને મઢેલ બાજઠિયોને, સોને મઢેલ ઝૂલો
હીરે જડેલ વિંઝણો મોતીનો મોંઘો અણમોલો
પાગલના થઇએ ભેરુ, કોઇના રંગ લાગે
બહુ એ સમજાવ્યું તો યે પંખી નવું પીંજરુ માંગે

Friday, 14 November 2014

महामृत्युंजयमंत्र

ॐ त्रयंबकम यजामहे सुगंन्धी पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात्

Friday, 7 November 2014

जय जय जननी श्री गणेश की

जय जय जननी श्री गणेश की
जय जय जननी श्री गणेश की
प्रतीभा परमेश्वर परेश की
प्रतीभा परमेश्वर परेश की
जय जय जननी श्री गणेश की

जय महेश मुख चंन्द्र चंन्द्रीका
जय जय जय जय जगत अंबीका
जय महेश मुख चंन्द्र चंन्द्रीका
जय जय जय जय जगत अंबीका

वर दे मा वरदान दायनी
वर दे मा वरदान दायनी
बनु दायकी द्वारीकेश 
जय जय जननी श्री गणेश की

शविनय विनती सुन हरी आये 
आये अपनाये ले जाये 
शविनय विनती सुन हरी आये 
आये अपनाये ले जाये

सुखद सुखद बेना आये मा 
सुखद सुखद बेना आये मा
सर्व सुमंगल ग्रीह पर्वेश की
सर्व सुमंगल ग्रीह पर्वेश की
जय जय जननी श्री गणेश की

प्रतीभा परमेश्वर परेश की
जय जय जननी श्री गणेश की
जय जय जननी श्री गणेश की


Tuesday, 4 November 2014

सबसो उंची प्रेम सगाई

सबसे उंची प्रेम सगाई, सबसे उंची प्रेम सगाई,
दुर्योधन का मेवा त्यागे,
दुर्योधन का मेवा त्यागे,
दुर्योधन का मेवा त्यागे,
सगा वीदुर घेर पाई.
सबसे उंची प्रेम सगाई,
सबसे उंची प्रेम सगाई......

जुठे फल सबरी के खाये,
जुठे फल सबरी के खाये,
जुठे फल सबरी के खाये,
बहु विध प्रेम लगाये, सबसे उंची प्रेम सगाई.......

प्रेम से बैठ अर्जुन रथ हाक्यो,
प्रेम से बैठ अर्जुन रथ हाक्यो,
प्रेम से बैठ अर्जुन रथ हाक्यो, भुल गये ठकुराई, सबसे उची प्रेम सगाई.......

एईसी प्रीत बडी वरदाना,
एईसी प्रीत बडी वरदाना,
एईसी प्रीत बडी वरदाना, 
गोपीयां नाच नचाई, सबसे बडी प्रेम सगाई.......

सुरा अकुरा ईस लायक नाही, 
सुरा अकुरा ईस लायक नाही, 
सुरा अकुरा ईस लायक नाही, 
सबसे उंची प्रेम सगाई,
सबसे उंची प्रेम सगाई........




बीनती सुनीये, नाथ हमारी;

      सुभद्रा द्वारा कृष्ण को पत्र 

      बीनती सुनीये....
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी; बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
      रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी,
      रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी;
      मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी, बीनती सुनीये नाथ हमारी.

      जनम जनम की लगी लगन है, हो.....,
       जनम जनम की लगी लगन है,
      साक्सी तारोन भरा गगन है,
      गीन गीन स्वास आस कहेती है,
      आयेगा श्री कृष्ण मुरारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,

      सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हो ओ ओ,
      सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हे भवबाधा, वीपती- वीमोचन, स्वागत का अधीकार दीजीये,

      सरणागत है नयन पुजारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,

      ओर कहुं क्या अंतरयामी, हो ओ ओ,
      तन मन धन प्राणो के स्वामी;
      करुणा कर आखर येह कीजीये,
      स्वीकारी बीनती स्वीकारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
      हदयस्वर हरि हदयेस्वरी,
      हदयस्वर हरि हदयेस्वरी;
      मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी, 
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
      बीनती सुनीये.........नाथ हमारी.

Monday, 3 November 2014

महेनत के फल मीठे होते है

नथु नाम का एक किसान था़, साथ में आलसी भी था, उसके पास एक खेत था, मगर कभी खेत में ध्यान देता नही, खेत में आम, पेरु, अनार ओर बहोत कीसम के फल के पेड थे, पर पानी ओर खात की कमी की वजह से सुक जाते थे, बाप दादा की महेनत की कमाई जमा पुंजी से घर चलाता था, आलसी नथु पुरा दिन आराम ही करता कोई काम काज करता ही नही.


एक दिन सोया था तभी उसे सपना आया की तेरे खेत में धन छुपाया है, खोदकाम करेगा तो मीलेगा ! सुबह होते ही नथु ओजार लेके खेत में पहुच गया, नथु के मन में यही था की एक बार धनदोलत मील जाये तो पुरी जींदगी कोई काम करने की जरुरत ना रहे, बस जलसा ही जलसा ! दुपेर होते ही नथु की ओरत खाना लेकर आई, खाना खाने की बजाय खोदकाम चालु रखा, धन मीलने की आशा में पुरा खेत खोद डाला, फीर भी धन नही मीला ओर नीराश होकर बैठ गया.


बरसो से खेत वैसे का वैसा ही पडा था मगर ये साल नथु ने धन की लालच में जमीन खोद डाली थी उपर से बारीस भी अच्छी हुई थी ओर भगवान की ईच्छा से पेड पे फल भी अच्छे लगे थे, टोकरे भर भर के फल बेचा था ओर ईश्वर का शुक्र मानता था, कभी ईतनी उपज देखी नही थी!


महेनत करने वाले को ईश्वर जरुर देता है !!

महेनत के फल मीठे होते है !!

महेनत करने वाला कभी दुखी नही होता. 

ली सीमा 


Saturday, 25 October 2014

વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ

વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
નયન કમળથી ધારા વહેતી 
પ્રભુ નયન કમળથી ધારા વહેતી
પ્રભુ નયન કમળથી ધારા વહેતી
હદય કમળ છે પ્યાસું પ્રભુ છે
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
હદય કમળ છે પ્યાસું પ્રભુ છે
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
મારા કોણ સુકાવે આંસુ 
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
તનમાં મનમાં દેહ ભુવનમાં 
તનમાં મનમાં દેહ ભુવનમાં તારી સબી પધરાવું
તનમાં મનમાં દેહ ભુવનમાં
તનમાં મનમાં દેહ ભુવનમાં તારી સબી પધરાવું
સરણે રહેવું ચરણે રહેવું અને મરણે તારો થાવું
સરણે રહેવું ચરણે રહેવું અને મરણે તારો થાવું
તુજ કાજે દિન દરવાજો પ્રભુ 
તુજ કાજે દિન દરવાજો પ્રભુ ખોલ્યો છે નહી વાશુ 
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ
વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ ઓ વિશ્વાસુના વિશ્વાસુ


Friday, 17 October 2014

कैसा पुजारी है जो खुद चखकर भगवान को भोग

रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर में पुजारी की नौकरी मिली। बीस रुपये वेतन तय किया गया जो उस समय के लिए पर्याप्त था। लेकिन पंद्रह दिन ही बीते थे कि मंदिर कमेटी के सामने उनकी पेशी हो गई और कैफियत देने के लिए कहा गया। दरअसल एक के बाद एक अनेक शिकायतें उनके विरुद्ध कमेटी तक पहुंची थीं। किसी ने कहा कि यह कैसा पुजारी है जो खुद चखकर भगवान को भोग लगाता है। फूल सूंघ कर भगवान के चरणों में अर्पित करता है। पूजा के इस ढंग पर कमेटी के सदस्यों को बहुत आश्चर्य हुआ था। जब रामकृष्ण उनके पास पहुंचे तो एक सदस्य ने पूछा-यह कहां तक सच है कि तुम फूल सूंघ कर देवता पर चढ़ाते हो? रामकृष्ण परमहंस ने सहज भाव से जवाब दिया- मैं बिना सूंघे भगवान पर फूल क्यों चढ़ाऊं? पहले देख लेता हूं कि उस फूल से कुछ सुगंध भी आ रही है या नहीं? फिर दूसरी शिकायत रखी गई- सुनने में आया है कि भगवान को भोग लगाने से पहले खुद अपना भोग लगा लेते हो? रामकृष्ण ने फिर उसी भाव से जवाब दिया- मैं अपना भोग तो नहीं लगाता पर मुझे अपनी मां की याद है कि वे भी ऐसा ही करती थीं। जब कोई चीज बनाती थीं तो चख कर देख लेती थीं और तब मुझे खाने को देती थीं। मैं भी चखकर देखता हूं। पता नहीं जो चीज किसी भक्त ने भोग के लिए लाकर रखी है या मैंने बनाई है वह भगवान को देने योग्य है या नहीं। यह सुनकर कमेटी के सदस्य निरुत्तर हो गए।

Friday, 15 August 2014

सुझाव

एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया कि दूर से
पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक
कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए
पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।
सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू
किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद
उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न
नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह
खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद
भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह
कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस
क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद
डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस
आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने
की सलाह दी थी।
उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले,
पानी एक में भी नहीं निकला। उस
व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं
चल कर उस स्थान पर आया, जहां उसने दस
गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह
समझ गया। बोला, ‘दस कुआं खोदने की बजाए
एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और
पुरूषार्थ लगाते तो पानी कब का मिल
गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल
एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल
आएगा।’
कहने का मतलब यही कि आज
की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट
करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है।
इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है
और पूरी एक भी नहीं हो पाती।


बाज और किसान…


बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।
राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।
जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।
राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो । “
आदमी ने ऐसा ही किया।
इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था।
ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा.
“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया।
” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”
राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।
अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।
फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे , पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।
फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।
वह व्यक्ति एक किसान था।
अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया। “
“मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा। “
दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ बड़ा करने की काबिलियत को भूल जाते हैं। यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही potential के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हुए हैं ?

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“कोई तुम्हारी बुराई करता है”

बहुत समय पहले की बात है किसी गाँव में मोहन नाम का एक किसान रहता था . वह बड़ा मेहनती और ईमानदार था .
अपने अच्छे व्यवहार के कारण दूर -दूर तक उसे लोग जानते थे और उसकी प्रशंशा करते थे .
पर एक दिन जब देर शाम वह खेतों से काम कर लौट रहा था तभी रास्ते में उसने कुछ लोगों को बाते करते सुना , वे उसी के बारे में बात कर रहे थे .
मोहन अपनी प्रशंशा सुनने के लिए उन्हें बिना बताये धीरे -धीरे उनके पीछे चलने लगा , पर उसने उनकी बात सुनी तो पाया कि वे उसकी बुराई कर रहे थे , कोई कह रहा था कि , “ मोहन घमण्डी है .” , तो कोई कह रहा था कि ,” सब जानते हैं वो अच्छा होने का दिखावा करता है …”
मोहन ने इससे पहले सिर्फ अपनी प्रशंशा सुनी थी पर इस घटना का उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा और अब वह जब भी कुछ लोगों को बाते करते देखता तो उसे लगता वे उसकी बुराई कर रहे हैं . यहाँ तक कि अगर कोई उसकी तारीफ़ करता तो भी उसे लगता कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है .
धीरे -धीरे सभी ये महसूस करने लगे कि मोहन बदल गया है , और उसकी पत्नी भी अपने पति के व्यवहार में आये बदलाव से दुखी रहने लगी और एक दिन उसने पूछा , “ आज -कल आप इतने परेशान क्यों रहते हैं ;कृपया मुझे इसका कारण बताइये.”
मोहन ने उदास होते हुए उस दिन की बात बता दी . पत्नी को भी समझ नहीं आया कि क्या किया जाए पर तभी उसे ध्यान आया कि पास के ही एक गाँव में एक सिद्ध महात्मा आये हुए हैं , और वो बोली , “ स्वामी , मुझे पता चला है कि पड़ोस के गाँव में एक पहुंचे हुए संत आये हैं ।चलिये हम उनसे कोई समाधान पूछते हैं .”
अगले दिन वे महात्मा जी के शिविर में पहुंचे .
मोहन ने सारी घटना बतायी और बोला , महाराज उस दिन के बाद से सभी मेरी बुराई और झूठी प्रशंशा करते हैं , कृपया मुझे बताइये कि मैं वापस अपनी साख कैसे बना सकता हूँ ! !”
महात्मा मोहन कि समस्या समझ चुके थे .
“ पुत्र तुम अपनी पत्नी को घर छोड़ आओ और आज रात मेरे शिविर में ठहरो .”, महात्मा कुछ सोचते हुए बोले .
मोहन ने ऐसा ही किया , पर जब रात में सोने का समय हुआ तो अचानक ही मेढ़कों के टर्र -टर्र की आवाज आने लगी .
मोहन बोला , “ ये क्या महाराज यहाँ इतना कोलाहल क्यों है ?”
“पुत्र , पीछे एक तालाब है , रात के वक़्त उसमे मौजूद मेढक अपना राग अलापने लगते हैं !!!”
“पर ऐसे में तो कोई यहाँ सो नहीं सकता ??,” मोहान ने चिंता जताई।
“हाँ बेटा , पर तुम ही बताओ हम क्या कर सकते हैं , हो सके तो तुम हमारी मदद करो “, महात्मा जी बोले .
मोहन बोला , “ ठीक है महाराज , इतना शोर सुनके लगता है इन मेढकों की संख्या हज़ारों में होगी , मैं कल ही गांव से पचास -साठ मजदूरों को लेकर आता हूँ और इन्हे पकड़ कर दूर नदी में छोड़ आता हूँ .”
और अगले दिन मोहन सुबह -सुबह मजदूरों के साथ वहाँ पंहुचा , महात्मा जी भी वहीँ खड़े सब कुछ देख रहे थे .
तालाब जयादा बड़ा नहीं था , 8-10 मजदूरों ने चारों और से जाल डाला और मेढ़कों को पकड़ने लगे …थोड़ी देर की ही मेहनत में सारे मेढक पकड़ लिए गए.
जब मोहन ने देखा कि कुल मिला कर 50-60 ही मेढक पकडे गए हैं तब उसने माहत्मा जी से पूछा , “ महाराज , कल रात तो इसमें हज़ारों मेढक थे , भला आज वे सब कहाँ चले गए , यहाँ तो बस मुट्ठी भर मेढक ही बचे हैं .”
महात्मा जी गम्भीर होते हुए बोले , “ कोई मेढक कहीं नहीं गया , तुमने कल इन्ही मेढ़कों की आवाज सुनी थी , ये मुट्ठी भर मेढक ही इतना शोर कर रहे थे तुम्हे लगा हज़ारों मेढक टर्र -टर्र कर रहे हों .
पुत्र, इसी प्रकार जब तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते सुना तो तुम भी यही गलती कर बैठे , तुम्हे लगा कि हर कोई तुम्हारी बुराई करता है पर सच्चाई ये है कि बुराई करने वाले लोग मुठ्ठी भर मेढक के सामान ही थे. इसलिए अगली बार किसी को अपनी बुराई करते सुनना तो इतना याद रखना कि हो सकता है ये कुछ ही लोग हों जो ऐसा कर रहे हों , और इस बात को भी समझना कि भले तुम कितने ही अच्छे क्यों न हो ऐसे कुछ लोग होंगे ही होंगे जो तुम्हारी बुराई करेंगे।”
अब मोहन को अपनी गलती का अहसास हो चुका था , वह पुनः पुराना वाला मोहन बन चुका था.


Friends, मोहन की तरह हमें भी कुछ लोगों के व्यवहार को हर किसी का व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए और positive frame of mind से अपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए। हम कुछ भी कर लें पर life में कभी ना कभी ऐसी समस्या आ ही जाती है जो रात के अँधेरे में ऐसी लगती है मानो हज़ारों मेढक कान में टर्र-टर्र कर रहे हों। पर जब दिन के उजाले में हम उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं तो वही समस्या छोटी लगने लगती है. इसलिए हमें ऐसी situations में घबराने की बजाये उसका solution खोजने का प्रयास करना चाहिए और कभी भी मुट्ठी भर मेढकों से घबराना नहीं चाहिए.

guru nanak story

Sunday, 20 July 2014

मटके में आठ प्रकार के जुठ

एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक

महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ
प्यालियाँ पड़ी थी | कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच
रही हो ? “ महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं
पाप बेचती हूँ | “ कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप
और मटके में ? “ महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है
| “ कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “महिला : ” आठ पाप इस
मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप …
और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है|”
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर
लोग पाप ले जाते है ? “महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से
खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के
साथ
अत्याचार और अन्याय , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य
का नाश , और
स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “
कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है |
किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप
होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ” // महिला : ”
महाराज ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे
धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है
और ‘मैं पाप बेचती हूँ ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले
जाते है |
Bkneelam

Saturday, 24 May 2014

MAHAMRITYUNJAY MANTRA

ATI VISHISHT ,ADBHUT ,DURLABH MAHAMRITYUNJAY MANTRA....

अति विशिष्ट, अद्भुत और दुर्लभ महामृत्युजय मंत्र- 





MANTRA:-

       "ॐ त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टीवर्धनम ऊर्वारुकमिव स्तुता वरदा प्रयोदयंताम् आयुः प्राणं प्रजां पशुं ब्रम्ह वर्चसं मह्यम् दत्वा ब्रजत ब्रम्ह लोकं॥" 

ये बहुत ही विशिष्ट और अद्भुत महामृत्युंजय मंत्र है ,ये मंत्र हमें अपने गुरुदेव से प्राप्त हुआ है | इस मंत्र की ये विशेषता है कि इसका नित्य श्रवण करने से या जाप करने से वात ,पित्त और... कफ़ ,तीनो प्रकार के दोषों का नाश होता है| इस मंत्र का अगर पारद शिवलिंग के सामने पूर्ण श्रद्धा से जाप किया जाए,तो शरीर में कैसा भी रोग क्यों न हो ,वह धीरे धीरे कम होता ही है,और लगातार यदि जाप किया जाए तो रोग समाप्त भी हो जाता है|यदि पारद शिवलिंग पर गाय के कच्चे दूध और पानी मिश्रित जल से अभिषेक किया जाए तो ये प्रक्रिया और भी जल्दी संपन्न हो जाती हैं|मंत्र जाप या अभिषेक में मंत्र की आवृत्ति नित्य कम से कम १०८ बार अवश्य होना चाहिए| ||जय सदगुरुदेव||

Monday, 10 March 2014

નમું તને, પથ્થરને? નહીં, નહીં, શ્રદ્ધા તણા આસનને નમું નમું :

નમું તને, પથ્થરને? નહીં, નહીં,
શ્રદ્ધા તણા આસનને નમું નમું :
જ્યાં માનવીનાં શિશુ અંતરોની
શ્રદ્ધાભરી પાવન અર્ચના ઠરી.
કે મુક્ત તલ્લીન પ્રભુપ્રમત્તની
આંખો જહીં પ્રેમળતા ઝરી ઝરી.
તું માનવીના મનમાં વસ્યો અને
તનેય આ માનવ માનવે કર્યો;
મનુષ્યની માનવતાની જીત આ
થયેલ ભાળી અહીં, તેહને નમું.
તું કાષ્ઠમાં, પથ્થર, વૃક્ષ, સર્વમાં,
શ્રદ્ધા ઠરી જ્યાં જઇ ત્યાં, બધે જ તું.
તને નમું, પથ્થરનેય હું નમું,
શ્રદ્ધા તણું આસન જ્યાં નમું તહીં.
- સુંદરમ્

Saturday, 8 March 2014

श्री कुंजबिहारी जी की आरती

श्री कुंजबिहारी जी की आरती

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लटन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

 
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
 
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

 
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू 
चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की...
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

સ્નેહીનાં સોણલા આવે સાહેલડી !

સ્નેહીનાં સોણલા આવે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે :
હૈયાનાં હેત તો સતાવે, સાહેલડી !
આશાની વેલ મારી ઊગી ઢળે.
ચડ્યું પૂર મધરાતનું, ગાજે ભર સૂનકાર :
ચમકે ચપળા આભમાં,
એવા એવા છે પ્રિયના ચમકાર :            રે સાહેલડી ! 
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
ઝરમર ઝરમર મેહુલો વરસે આછે નીર :
ઊને આંસુ નયનો ભીંજે,
એવાં એવાં ભીંજે મારા ચીર :               રે સાહેલડી ! 
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
અવની ભરી, વન વન ભરી, ઘુમે ગાઢ અંધાર,
ઝબકે મહીં ધૂણી જોગીની,
એવા એવા છે પ્રિયના ઝબકાર :           રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
ઝીણી જ્યોતે ઝળહળે પ્રિયનો દીપક લગીર :
પડે પતંગ, મહીં જલે,
એવી એવી આત્માની અધીર :             રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે. 
ખૂંચે ફૂલની પાંદડી, ખૂંચે ચંદ્રની ધાર :
સ્નેહીનાં સંભારણા
એવાં એવાં ખૂંચે દિલ મોઝાર :             રે સાહેલડી !
ઉરના એકાન્ત મારા ભડકે બળે.
* * *

રોઈ રોઈ આંસુની ઊમટે નદી તો એને કાંઠે કદમ્બવૃક્ષ વાવજો,

રોઈ રોઈ આંસુની ઊમટે નદી તો એને કાંઠે કદમ્બવૃક્ષ વાવજો,
વાદળ વરસે ને બધી ખારપ વહી જાય પછી ગોકળિયું ગામ ત્યાં વસાવજો.
             આંખોમાં સાંભરણ ખૂંચશે કણાની જેમ
                                                  પાંપણનાં દ્વાર કેમ દેશું?
             એક પછી એક પાન ખરશે કદમ્બનાં 
                                                   ને વેળામાં વીખરાતાં રેશું.
છલકાતું વહેણ કદી હોલાતું લાગે તો વેળુમાં વીરડા ગળાવજો.
             આઠમની ધોધમાર મધરાતે એક વાર
                                                  પાનીએ અડીને પૂર ગળશે,
             પાણીની ભીંતો બંધાઈ જશે
                                      ગોકુળને તે દી’ ગોવાળ એક મળશે.
લીલુડાં વાંસવન વાઢશો ન કોઈ, મોરપીંછિયુંને ભેળી કરાવજો.
             પૂનમની એકાદી રાતના ઉજાગરાને
                                                  સાટે જીવતર લખી જાશું,
             અમથુંયે સાંભરશું એકાદા વેણમાં 
                                                  તો હૈયું વીંધાવીને ગાશું.
ભવભવની પ્રીતિનું બંધારણ ભેટે તો વનરાવન વાટે વળાવજો!
લીલુડાં વાંસવન વાઢશો ન કોઈ, મોરપીંછિયુંને ભેળી કરાવજો.
* * *

તમારું મુલ્ય કેટલું છે તે તમારી ઉપર નિર્ભર છે

એક યુવાને એના પિતાને પૂછ્યું કે પપ્પા આ માનવજીવનનું મૂલ્ય શુ છે ? પિતાએ જવાબમાં દીકરાના હાથમાં એક પથ્થર મુક્યો અને કહ્યું, "તું આ પથ્થર...