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Tuesday, 16 December 2014

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

मन मंदिर की ज्योति जगा दो घट घट वासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

मंदिर मंदिर मूरत तेरी

फिर भी ना दीखे सूरत तेरी

युग बीते, ना आई मिलन की पूरनमासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

द्वार दया का जब तू खोले

पंचम स्वर में गूंगा बोले

अंधा देखे, लंगड़ा चल कर पंहुचे काशी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे

पानी पी कर प्यास बुझाऊं

नैनों को कैसे समझाऊं

आंख मिचौली छोड़ो अब तो

मन के वासी रे

दर्शन दो घनश्याम, नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे


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