हिमाद्री तुंग श्रृंग से,
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभो समुज्ज्वला,
स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो
दृढ प्रतिज्ञा सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है,
बढे चलो बढे चलो
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह सी
सपूत मात्रभूमि के,
रुको न शूर साहसी
अराती सैन्य सिन्धु में
सुवाढ़ वाग्नी से जलो
प्रवीर हो जयी बनो,
बढे चलो बढे चलो
- जय मा भारती
- आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य
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