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Tuesday, 4 November 2014

बीनती सुनीये, नाथ हमारी;

      सुभद्रा द्वारा कृष्ण को पत्र 

      बीनती सुनीये....
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी; बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
      रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी,
      रदयेस्वर हरी रदयेस्वर हरी;
      मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी, बीनती सुनीये नाथ हमारी.

      जनम जनम की लगी लगन है, हो.....,
       जनम जनम की लगी लगन है,
      साक्सी तारोन भरा गगन है,
      गीन गीन स्वास आस कहेती है,
      आयेगा श्री कृष्ण मुरारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,

      सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हो ओ ओ,
      सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन, हे भवबाधा, वीपती- वीमोचन, स्वागत का अधीकार दीजीये,

      सरणागत है नयन पुजारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,

      ओर कहुं क्या अंतरयामी, हो ओ ओ,
      तन मन धन प्राणो के स्वामी;
      करुणा कर आखर येह कीजीये,
      स्वीकारी बीनती स्वीकारी,
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी,
      हदयस्वर हरि हदयेस्वरी,
      हदयस्वर हरि हदयेस्वरी;
      मोर-मुकुट पीतांम्बरधारी, 
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
      बीनती सुनीये, नाथ हमारी;
      बीनती सुनीये.........नाथ हमारी.

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