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Thursday, 26 March 2015

गायत्री की दस भुजाएं

पार्वती ने पूछा, ‘‘प्रभु ! गायत्री की दश भुजाओं का क्या अर्थ है ?’शिव बोले, 

‘‘पार्वती ! मनुष्य जीवन के दस शूल अर्थात् कष्ट हैं। ये दस कष्ट है—

दोषयुक्त दृष्टि, परावलंबन, भय, क्षुद्रता, असावधानी, क्रोध, स्वार्थपरता, 

अविवेक, आलस्य और तृष्णा। गायत्री की दस भुजाएं 

इन दस कष्टों को नष्ट करने वाली हैं। 

इसके अतिरिक्त गायत्री की दाहिनी पांच भुजाएं मनुष्य के जीवन में 

पांच आत्मिक लाभ—आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, आत्म-अनुभव, 

आत्म-लाभ और आत्म-कल्याण देने वाली हैं 

तथा गायत्री की बाईं पांच भुजाएं पांच सांसारिक लाभ—स्वास्थ्य, 

धन, विद्या, चातुर्य और दूसरों का सहयोग देने वाली हैं। 

दस भुजी गायत्री का चित्रण इसी आधार पर किया गया है। 

ये सभी जीवन विकास की दस दिशाएं हैं। 

माता के ये दस हाथ, साधक को उन दसो दिशाओं में सुख 

और समृद्धि प्रदान करते हैं। 

गायत्री के सहस्रो नेत्र, सहस्रों कर्ण, सहस्रों चरण भी कहे गए हैं। 

उसकी गति सर्वत्र है।


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